Koshal Verma

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बलात्कार:लड़की की दर्द भरी भावनाएं

पंक्ति 1 दर्द की गहराइयों में खो गई, इश् शहर में बलात्कार हुई, आंसू से उम्मीद की कटवारें, छूटे एक नदी की तरह समझो हमें।

पंक्ति 2 अँधेरे से उभरने की राह में, रोशनी भी ढल गई है आँखें नम करके। इंतज़ार का जेबलपन, आहट की ठंडक के दायरे में बस गया।

चरण हम चाहते हैं सम्मान और न्याय, गैरों के तोंद जब सोच का जाल बन जाये। दरिंदे और जबरनी बल का, प्यार और भरोसा हमसे चुरा लें।

सिलसिला अजनबी से रहना चाहती हूँ दूर, अपने आप में खो जाने की इच्छा है। पनाह में धड़कनों की झंकारों को, आज चैंबरों में बंद कर दें।

अंतिम चरण जाने कितने खंजर घुंघरू बन चुके हैं, नदियों को आँखों का अभिशाप दिया। लड़ू अब नगण्य राहों में, बुराई ठान ली है हर हिम्मत है हमें।

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6 Comments

Rupesh Kumar

18-Dec-2023 07:37 PM

Nice

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Gunjan Kamal

18-Dec-2023 05:41 PM

👌👏

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Khushbu

18-Dec-2023 05:10 PM

Nyc

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